·

तुम तो क्रान्ति लाने निकले थे
खाली हाथ वापस आ गए
नहीं मिली क्या
मुझे पता है तुम कहोगे
कि तुमने पूरी कोशिश की
लेकिन सब सो रहे थे
तो भाई जगाते लोगों को
क्रान्ति लाने की तो बड़ी बात करते थे
फिर वही बात
अब तुम कह रहे हो कि
वो बुरा मान रहे थे जगाने पर
तो तुमने क्या सोचा था
तुमसे खुश होंगे
आरती उतारेंगे
अरे सोते हुए आदमी को जगाओगे
तो गाली ही खाओगे
और गाली से डर जाओगे तो क्रान्ति कैसे लाओगे
नारे तो खूब लगाते थे
लाठी गोली खायेंगे
देश को बचायेंगे
गोली तो क्या गाली भी नहीं खा पाए ढंग से
डरपोक साले
बहादुर बने फिरते हो
अरे लाठी गोली दूर की बात है
पहले जाओ गाली खाओ
लोगों को जगाओ
तुम सुबह के मुर्गे हो
तुम्हारे बोलने से ही लोग जानेंगे सुबह हुई है
उनके घर बंद हैं ना छतों से
काले रंग की छतें हैं सदियों पुरानी
खिड़कियाँ और रोशनदान भी तो नहीं हैं
उनके गुफा जैसे घरों में
ऐसे तो उजाला जाएगा नहीं
तुम्हे ही ले के जाना पडेगा
अपने हाथों से
अब तुम कहोगे तुम्हे घुसने ही नहीं देते हैं भीतर
तो जाओ बाहर से ही बांग दो ना
मुर्गा भी एक एक के घर थोड़ी जाता है
या तो एक काम करो यार
कलम ले आओ
उसमे रोशनी भर लो सूरज की
फिर उससे चिट्ठियां लिख कर भेजा करो
सबके घर में
देखना थोड़ा थोड़ा उजाला पहुच जाएगा
उनके अँधेरे घरों में
कुछ लोग तो जागेंगे
अरे डिस्टर्ब होंगे, करवट लेंगे
तुम पर चिल्लायेंगे
तो क्या नींद न टूटेगी इससे
ज़रूर टूटेगी, ज़रूर जागेंगे
रोशनी में बड़ा आकर्षण है
सुबह बला की खूबसूरत है, ताज़ी है, कमसिन है
बाकी काम वो खुद कर देगी
पर ज़ल्दबाज़ी न करना
डरना भी नहीं
हिम्मत तो बिलकुल नहीं हारनी है
क्रांति लानी है ना
कि ऐसे ही जियोगे हमेशा
और अकेले ही जागोगे तो बोर न हो जाओगे
फिर थोड़ी देर में तुम्हे भी नींद आ जायेगी.

Categories:
poetry