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पास जाकर देखने में डर लगता है
अजीब सी घबराहट होती है
दूर से निहारा करता हूँ सहमा हुआ सा
गला सूखने लगता है बिना बोले ही
आखें कुछ देखना नहीं चाहतीं
भ्रमित होकर चौड़ी हो गयी हैं
कभी राख दिखती है, कभी आग, कभी घर
सब एक साथ, एक ही बार में
राख में पडी सारी अधजली घड़ियाँ अलग अलग समय दिखाती हैं
उनकी सुइयों से टकरा कर गिर पड़ता हूँ
फिर सारी ताकत लगाकर उठने की कोशिश करता हूँ
फिर सारी ताकत लगाकर उठने की कोशिश करता हूँ
सर घूम रहा है, सब कुछ लूप में है
बार बार उठने की कोशिश, बार बार गिरना
अद्भुत इल्यूशन है
और इस सारी गति के बीच मैं एकदम स्थिर हूँ
भ्रमित और हैरान
डायरी में मैंने जवाब लिखे थे कुछ सवालों के
अब पलटकर देखता हूँ
तो क्वैश्चन मार्क लग गया है सबके आगे
सारे जवाब सवाल बन गए हैं
घबराकर डायरी फेक देता हूँ
ख़याल आता है इल्यूजन है, टूटेगा थोड़ी देर में
फिर सोचता हूँ, इल्यूजन तो टूट चुका है.

Categories:
poetry