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कदम दर कदम बदलेंगी तसवीरें
बेतरतीब बे सुर ताल हाथ छूटेंगे
कविताएं खुदकुशी करके कहानियाँ बन जायेंगी
और फिर ख़्वाबों में आयेंगी बची हुई उम्र भर
ख्वाब डरावने होते जायेंगे रात दर रात
लेकिन क्योंकि तुम इंसान हो
हर बार उठोगे ख़्वाबों को बीच में तोड़
और फिर से नयी तसवीरें बनाओगे मुस्कुराती हुई
लेकिन इस बार ये मुस्कराहट फूलों जैसी नहीं होगी
रंग भी इन्द्रधनुष वाले नहीं होंगे
दुनिया के लिए तुम्हारी तस्वीर एक पहेली बनती जायेगी
और तुम्हारे लिए इन्द्रधनुष
दुनिया की याददाश्त कमज़ोर है
पर तुम जानबूझकर भी ये भुला नहीं पाओगे
आखिर तुम इंसान जो हो
और फिर कस्तूरी वाले हिरन की तरह
तुम्हें भटकना होगा रंगों की तलाश में
सन्नाटे, उदासी भरे घनघोर जंगल में
निहायत अकेले.

Categories:
poetry