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मैं खुश हूँ
मेरी आखों में पौधे हैं
पौधों में फूल हैं फूलों में कांटे हैं
खुशबू भी है, रंग भी हैं
सूरज हैं, उजाले हैं
चाँद हैं, तारे हैं
देखो मेरी आखों में सब कुछ है
तुम भी हो, देखो
पास आके देखो, करीब से, हाथ से छूके
ध्यान से छूना थोड़ी सी नमी भी है
पौधे हैं ना, नमी रखनी पड़ती है थोड़ी
वरना पौधे सूख जाते हैं ज़िंदगी की तरह
या फिर नागफनी बन जाते हैं दुनिया की तरह
तुम्हें दोनों पसंद नहीं हैं न मेरी तरह
तो मैंने कहा, तुम भी हो मेरी आखों में
चाहो तो छूके देखो कभी खुद को
शायद कुछ नया मिले
कुछ अनछुआ मिले सपनों की तरह
देखो ये मेरी आखों वाला उजाला कैसा है
ये सपनों वाला सूरज अच्छा है ना
देख लो ध्यान से, पता नहीं कब डूब जाए
कोइ डूबा हुआ सूरज उगा नहीं पाया कभी
चाँद में देखनी पड़ती है उसकी परछाईं
तुम्हें परछाईं देखना पसंद है न
शीशे में, पानी में, आखों में
नज़रों में, लफ़्ज़ों में, बातों में
इन सबमें कुछ है इश्वर की तरह
अनदेखा अनछुआ
अरे हाँ,
तुम भी इश्वर को नहीं मानती ना
मेरी तरह !
मेरी आखों में पौधे हैं
पौधों में फूल हैं फूलों में कांटे हैं
खुशबू भी है, रंग भी हैं
सूरज हैं, उजाले हैं
चाँद हैं, तारे हैं
देखो मेरी आखों में सब कुछ है
तुम भी हो, देखो
पास आके देखो, करीब से, हाथ से छूके
ध्यान से छूना थोड़ी सी नमी भी है
पौधे हैं ना, नमी रखनी पड़ती है थोड़ी
वरना पौधे सूख जाते हैं ज़िंदगी की तरह
या फिर नागफनी बन जाते हैं दुनिया की तरह
तुम्हें दोनों पसंद नहीं हैं न मेरी तरह
तो मैंने कहा, तुम भी हो मेरी आखों में
चाहो तो छूके देखो कभी खुद को
शायद कुछ नया मिले
कुछ अनछुआ मिले सपनों की तरह
देखो ये मेरी आखों वाला उजाला कैसा है
ये सपनों वाला सूरज अच्छा है ना
देख लो ध्यान से, पता नहीं कब डूब जाए
कोइ डूबा हुआ सूरज उगा नहीं पाया कभी
चाँद में देखनी पड़ती है उसकी परछाईं
तुम्हें परछाईं देखना पसंद है न
शीशे में, पानी में, आखों में
नज़रों में, लफ़्ज़ों में, बातों में
इन सबमें कुछ है इश्वर की तरह
अनदेखा अनछुआ
अरे हाँ,
तुम भी इश्वर को नहीं मानती ना
मेरी तरह !

Categories:
poetry