राक्षसों की आखें

जब मैं एक बुरे ख्वाब में अपने ख़्वाबों की फसल रौंदता हुआ गुज़रता हूँ
मेरी आखें एकदम खाली हो जाती हैं
गर्मियों की दोपहर जैसी
उसके बाद मेरी आखें उस कहानी राक्षस के जैसी हो जाती हैं
जो मैं बचपन से सुनता आया था
वो राक्षस बुरा नहीं था, जैसा कि मैं बचपन से समझता था
राक्षसों की आखें भी बुरी नहीं होतीं
उनकी आखें खाली होती हैं
उनके ख्वाब रौंद दिए जाते हैं
गर्मी की एक दोपहर में
और फिर सारे मौसम सूखे में बदल जाते हैं
फिर जब कभी पानी बरसता है तो राक्षस उसमें अपना चेहरा देखते हैं
चेहरे में उन्हें बस आखें दिखाई देती हैं
एकदम खाली और वीरान आखें
और सारी बरसात एक लम्बे और वीरान सूखे में बदल जाती है
नागफनी की तरह
बादलों के काटें निकल आते हैं
फिर उनसे पानी नहीं आग बरसती है
जिससे भीगने के अलावा कोई चारा नहीं होता उन राक्षसों के पास
फिर बाकी मौसम राक्षस उँगलियों पर अपनी बची हुई उम्र गिनते गुजारते हैं
कभी कभी उनकी उँगलियों पर भी कांटे उग आते हैं
राक्षस अपनी उगंली काट देना चाहते हैं
फिर उन्हें याद आता है कि इनसे उन्होंने तारे गिने थे
उन्हें कांटे तारों जैसे दिखने लगते हैं
वो तारों को चूमते हैं और अपने होठ काट लेते हैं
होठ काटने पर राक्षस दुखी नहीं होते
वो हँसते हैं
दुनिया उन्हें हसते हुए याद रखती हैं
हा..हा...हा...हा...!!!