अक्स

वो ईसू नहीं था न ही उनका अनुयायी
उसने कभी एक थप्पड़ खाने पर
दूसरा गाल आगे नहीं किया
लेकिन दुनिया ने उसका दूसरा गाल ढूंढ लिया
उसने पहाड़ और झरने नहीं देखे थे
इसलिए वो हैरान हुआ
जब किसी ने उसकी आखों को
सूखे हुए झरने जैसा लिखा
वो अभी नवयुवक ही था
जब उसकी पीठ बूढों की तरह झुकने लगी
माथे की ज़मीन पर दरारें गहरा गयीं
और इन दरारों में उसकी तकदीर के पैर फसने लगे
वो कभी आस्तिक नहीं रहा था
लेकिन उसने
ईश्वर के न होने पर उतना ही अफ़सोस किया
जितना खुद के होने पर
एक बार बरसात के मौसम में
जब उसकी आखों में इन्द्रधनुष निकला
उसने अपने लिए लंबा जीवन मांग लिया
मगर फिर बादल हटे, धूप निकली
और इन्द्रधनुष के सारे रंग उड़ गए
घबराकर उसने अपनी घड़ी तेज करनी चाही
लेकिन घड़ी के सेल कमज़ोर हो चुके थे
उसे एक जीवन में कई सदियाँ जीनी पडीं
धीरे धीरे उसके आस पास के लोग बुत बनने लगे
और उसने पत्थरों के बीच जीना सीखा
जब उसने शीशा देखा
उसे लगा जैसे वो खुद भी पत्थर बन गया हो
उसने शीशा तोड़ना चाहा
मगर शीशा मजबूत था और उसका वार काफी गहरा
उसका अक्स सौ टुकड़ों में टूटकर बिखरा...!