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और राईटर्स ब्लॉक से जूझ रहा लेखक
एक अच्छे मोड़ के इंतज़ार में
यूं ही दिन रात कलम घिसता है
बीतते जाते हैं एपिसोड पर एपिसोड
दर्शक बोर हो जाते हैं और किरदार चिडचिडे
सौ बार दोहराए जाते हैं घिसे पिटे डायलॉग्स
कैमरा दोहराता है अलग अलग एंगल से
वही चेहरे वही एक्स्प्रेशंस
कुछ नया नहीं, कुछ बड़ा नहीं
और क्योंकि उधर राईटर रातें गला रहा है
तो हर लम्बे सीन के बाद ऐसा लगता है कुछ नया होगा
मगर बार बार टूटती है दर्शकों की उम्मीदें
और फिर हर बार ये ट्विस्ट रिपीट करता है खुद को
लेकिन नहीं आता कभी वो खूबसूरत मोड़
जिसका इंतज़ार है सबको
अब सवाल उठता है की लेखक कब हार माने
कब टूटे आख़िरी क्लाईमेक्स की उम्मीद
और कब ऐसा हो
कि एक दिन अचानक यूं ही चुपके से
कहानी खुद ही थककर सांस लेना बंद कर दे
और स्क्रीन पर दिखाई दे 'द एंड' का कार्ड.

Categories:
poetry