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ये साला झूठ की दुनिया में, गहरे तक धंसा होना
और आँखें खुली होना, बताओ इससे मुश्किल क्या
देखना खुद को ख़तम होते, खुदी का सर कलम होते
और उफ़ तक नहीं करना, बताओ इससे मुश्किल क्या
वो सर पीछे मुड़े तो भी, नज़र आगे पड़े तो भी
सभी कुछ एक जैसा स्याह, बताओ इससे मुश्किल क्या
न मुझमें मैं, न तुझमे तू, न इसमें ये, न उसमें वो,
नाम झूठे शकल झूठी, बताओ इससे मुश्किल क्या.
और आँखें खुली होना, बताओ इससे मुश्किल क्या
देखना खुद को ख़तम होते, खुदी का सर कलम होते
और उफ़ तक नहीं करना, बताओ इससे मुश्किल क्या
वो सर पीछे मुड़े तो भी, नज़र आगे पड़े तो भी
सभी कुछ एक जैसा स्याह, बताओ इससे मुश्किल क्या
न मुझमें मैं, न तुझमे तू, न इसमें ये, न उसमें वो,
नाम झूठे शकल झूठी, बताओ इससे मुश्किल क्या.

Categories:
poetry