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कल रात सोने में बड़ी मुश्किल रही
तुम ख्वाब जैसे आँख में चुभते रहे
सुबह उठकर जो आखें धोईं उनमें चाशनी थी
तुम्हारी हंसी भी खनकी किसी बीती घड़ी से
मैं साँस रोके डूबकर सुनने लगा
गनीमत थी अलार्म बज गया, मैं जग गया
तुम्हारी आँख के भीतर भी झांका था ठहरकर
मुझे बादल दिखे, सागर दिखा दुनिया दिखी
काश तुम देख पाते, किस कदर चौंका हुआ था
मेरी दुनिया अँधेरी सी तुम्हारे चाँद से सपने
कल की अंधेरी रात मैं जुगनू रहा
दोपहर तक मेरी आखों में चमक थी.
तुम ख्वाब जैसे आँख में चुभते रहे
सुबह उठकर जो आखें धोईं उनमें चाशनी थी
तुम्हारी हंसी भी खनकी किसी बीती घड़ी से
मैं साँस रोके डूबकर सुनने लगा
गनीमत थी अलार्म बज गया, मैं जग गया
तुम्हारी आँख के भीतर भी झांका था ठहरकर
मुझे बादल दिखे, सागर दिखा दुनिया दिखी
काश तुम देख पाते, किस कदर चौंका हुआ था
मेरी दुनिया अँधेरी सी तुम्हारे चाँद से सपने
कल की अंधेरी रात मैं जुगनू रहा
दोपहर तक मेरी आखों में चमक थी.
Categories:
poetry