भूत

जब मैं छोटा था
मुझे अँधेरे से डर लगता था
छत पर अकेला रह जाता या
जब किसी सुनसान रास्ते से गुज़रता 
बेवजह ही डर जाता
तेज क़दमों से चलता
और गलती से भी पीछे मुड़ कर नहीं देखता
पता नहीं किस अनदेखी चीज़ का डर था
बिना पैरों वाले भूत का किस्सा सुना था कहीं 
जो रेलवे ट्रैक पर रहता था
और आने जाने वालों से कभी बीडी
तो कभी माचिस माँगता था
मैं छोटा था, मेरे पास न बीडी थी न माचिस
इसीलिये ज़्यादा डरता था
जब रात गए भूत को तलब लगती
बिना पैरों के चलता हुआ
मेरे सपने में आ जाता
फिर मैं आधी रात को
पसीने में भीगा हुआ खुद को समझाता
कि भूत वूत कुछ नहीं होता
और सपने कभी सच नहीं होते
पर फिर भी कई साल तक यूं ही बेवज़ह डरता रहा
पिछले कुछ वक़्त से देख रहा हूँ
वो डर फिर से लौट आया है
किसी भी हाल में मुड़कर नहीं देखना चाहता अब मैं
कभी नज़र पड़ जाए अगर पीछे तो काँप उठता हूँ
साँसे बेलगाम रहती हैं देर तक
ज़ल्दी से सब भूल कर आगे भागना चाहता हूँ
और इस बार गज़ब ये है
कि पैर तो चलते हैं मगर मैं वहीं अटका रहता हूँ
और बिना पैरों का भूत
मेरे एकदम करीब तक पहुच जाता है
अब जब फिर से यकीन होने लगा है
कि सपने कभी सच नहीं होते
काश मैंने कभी भूत न देखा होता
और खुद को ये भी समझा पाता
कि भूत वूत कुछ भी नहीं होता.